
सर्दियों की छुट्टियां शुरू होने से पहले दिसंबर के ठंडे ☃ मौसम में एक दिन लेक्चर के लिए क्लास तक पहुंची हेमा को चार विद्यार्थी बाहर बैठे गप्पें मारते मिले… उन्हीं दिनों चूंकि बहुत से विद्यार्थी खेल सप्ताह से जुड़ी गतिविधियों में भी व्यस्त रहते थे, और क्लास में नहीं आते थे, तो, हेमा ने उन्हीं चार विद्यार्थियों से पूछा, “क्लास के भीतर भी कोई विद्यार्थी हैं या नहीं…?” वे मुस्कुराए, और ‘हां’ में जवाब दिया… हेमा ने फिर पूछा, “कितने बच्चे हैं भीतर…?”
1. पहला विद्यार्थी बोला, “मैडम, संख्या दो अंकों की है, और कोई भी अंक शून्य नहीं है…”
2. दूसरा विद्यार्थी बोला, “मैडम, संख्या 150 नहीं है…”
3. तीसरा विद्यार्थी बोला, “मैडम, संख्या को 25 से भाग दिया जा सकता है…”
4. चौथा विद्यार्थी बोला, “मैडम, संख्या से 150 को भाग दिया जा सकता है…”
तब तक हेमा की समझ में आ चुका था कि वे अपनी लेक्चरर की परीक्षा ले रहे हैं, और उसने फिर पूछा, “इसके अलावा आप लोग मुझे कुछ और जानकारी देना चाहेंगे…?” विद्यार्थी बोले, “मैडम, हम चारों में से एक ने सच नहीं कहा है…” हेमा ने चकरा जाने का अभिनय करते हुए कहा, “अगर मैं आप लोगों को बता दूं कि क्लास के भीतर कितने विद्यार्थी हैं, और यह भी बता दूं कि आपमें से कौन झूठ बोला, तो आप लोग उतनी ही बार हिन्दी की पूरी किताब को लिखकर लाएंगे, जितने विद्यार्थी क्लास के भीतर हैं… कहिए, मंज़ूर है…?” चारों ने एक-दूसरे की ओर देखा , और यह सोचकर कि हिन्दी की लेक्चरर उनकी इस गणितीय पहेली से हार जाएगी, एक स्वर में कहा, “जी मैडम, हमें मंज़ूर है…” अब हेमा के चेहरे पर मुस्कुराहट आई, और उसने तुरंत बता दिया कि उन चारों में से कौन झूठ बोला था, और क्लास के भीतर कितने विद्यार्थी हैं… बेचारे विद्यार्थी!!! लेकिन क्या अब आप लोग मुझे बता सकते हैं, उनमें से कौन-सा विद्यार्थी झूठ बोला था, और उन बेचारों को हिन्दी की किताब कितनी-कितनी बार लिखनी होगी…?